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कर्रेगट्टा के जंगलों में सातवें दिन भी मुठभेड़ जारी, जवानों ने कसा शिकंजा, नक्सलियों के सामने सरेंडर या मौत का विकल्प

बीजापुर (छत्तीसगढ़)।
कर्रेगट्टा के घने जंगलों में आज सातवें दिन भी गोलियों की आवाज गूंज रही है। देश के सबसे बड़े नक्सल विरोधी अभियानों में से एक में लगभग 10,000 जवान नक्सलियों के सबसे मजबूत गढ़ को चारों तरफ से घेर चुके हैं। हिड़मा, देवा, विकास, दामोदर और सुजाता जैसे खूंखार नक्सली कमांडर अब घेरे में फंसे हुए हैं।

सूत्रों के मुताबिक, जवानों ने इस बार ठान लिया है कि ऑपरेशन का अंत किसी भी हाल में नक्सलियों के सफाए के साथ ही होगा। हर दिशा से दबाव बनाने की रणनीति के तहत नक्सलियों के भागने के सभी रास्ते बंद कर दिए गए हैं।

जानकारी मिल रही है कि लगातार दबाव के चलते नक्सलियों की हालत खराब हो रही है। उनके पास राशन तेजी से खत्म हो रहा है, गोलियों की भी किल्लत होने लगी है और मनोबल टूटने के कगार पर है। ऐसे में अब उनके पास केवल दो ही रास्ते बचे हैं—या तो हथियार डालकर आत्मसमर्पण करें या फिर लड़ते-लड़ते अपनी जान गंवाएं।

सुरक्षा बलों ने कर्रेगट्टा के दुर्गम इलाकों में सर्च ऑपरेशन और तेज कर दिया है। ड्रोन, हेलिकॉप्टर और हाईटेक सर्विलांस उपकरणों के जरिए पूरे इलाके पर पैनी नजर रखी जा रही है। साथ ही, जवान थल मार्ग से भी जंगलों की गहराई में घुसकर नक्सलियों पर शिकंजा कस रहे हैं।

वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों का कहना है कि अब ऑपरेशन निर्णायक मोड़ पर पहुंच चुका है और बहुत जल्द बड़े नक्सली सरगनाओं की गिरफ्तारी या उनके खात्मे की खबर सामने आ सकती है।

छत्तीसगढ़ सरकार और केंद्रीय सुरक्षा एजेंसियों की इस संयुक्त कार्रवाई को नक्सलवाद के खिलाफ अब तक की सबसे बड़ी और सबसे साहसी पहल माना जा रहा है।

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