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डोंगरगढ़। एक ओर केंद्र और राज्य सरकारें ‘स्वच्छ भारत’ और ‘वन्यजीव संरक्षण’ जैसे अभियानों पर करोड़ों रुपए खर्च कर रही हैं, वहीं डोंगरगढ़ में नगर पालिका की लापरवाही ने इन योजनाओं की पोल खोलकर रख दी है। शहर के सरस्वती शिशु मंदिर से बछेरा भांटा रोड तक फैले जंगल के किनारे, अब खुलेआम कचरे का अंबार लगा दिया गया है – और ये कोई आम कचरा नहीं, बल्कि पॉलिथीन, झिल्ली, मेडिकल वेस्ट और अन्य खतरनाक अपशिष्ट हैं।
स्थानीय लोगों का कहना है कि यह स्थिति पिछले कई महीनों से लगातार बिगड़ रही है, लेकिन जिम्मेदार अधिकारी आंख मूंदे बैठे हैं। हैरानी की बात यह है कि जिस जगह यह कचरा डंप किया जा रहा है, वो जंगल क्षेत्र से सटा हुआ है, जहां वन्यजीवों की आवाजाही आम बात है। ऐसे में इस कचरे से न सिर्फ वन्यजीवों को खतरा है, बल्कि जंगल की पारिस्थितिकी पर भी बुरा असर पड़ रहा है।
डोंगरगढ़ में बने मणिकंचन केंद्र, जिसे कचरा निपटान और रिसाइक्लिंग के लिए विकसित किया गया था, वह केवल नाम मात्र का केंद्र बनकर रह गया है। असल में, नगर पालिका द्वारा पूरे शहर का कचरा इस केंद्र के पीछे लाकर बिना किसी प्रोसेसिंग के जंगल की ओर फेंक दिया जा रहा है, जिससे कचरा अब कई किलोमीटर तक फैल चुका है।
🔹 स्थानीय निवासियों का आक्रोश
स्थानीय नागरिकों और पर्यावरण प्रेमियों में इस मामले को लेकर गहरा आक्रोश है। लोगों का कहना है कि प्रशासन की अनदेखी के चलते न केवल शहर की सुंदरता खराब हो रही है, बल्कि जंगल की जैव विविधता और जमीन के भीतर के जलस्रोत भी प्रदूषित हो सकते हैं।
🔹 प्रशासन से जवाबदेही की मांग
अब लोग नगर पालिका और जिला प्रशासन से तत्काल कार्रवाई की मांग कर रहे हैं। पर्यावरणविदों ने चेतावनी दी है कि यदि जल्द ही कचरे का व्यवस्थित निपटान नहीं किया गया, तो यह स्थिति आगामी मानसून में और गंभीर रूप ले सकती है, जिससे स्वास्थ्य संबंधी आपदाएं भी उत्पन्न हो सकती हैं।
यह मामला प्रशासनिक सुस्ती और पर्यावरणीय संवेदनशीलता के प्रति उदासीनता का जीता-जागता उदाहरण बन गया है। जरूरत है कि नगर पालिका तुरंत हरकत में आए और स्वच्छता व वन्यजीव संरक्षण के सिद्धांतों को केवल कागजों तक न रखकर, जमीनी स्तर पर भी सख्ती से लागू करे।