नई दिल्ली, 27 अप्रैल 2025 — दिल्ली हाईकोर्ट ने नवंबर 2023 में एक नवविवाहिता की संदिग्ध परिस्थितियों में हुई मृत्यु के मामले में आरोपी पति को जमानत प्रदान की है। न्यायमूर्ति संजीव नरूला की पीठ ने यह निर्णय सुनाते हुए कहा कि दहेज हत्या जैसे गंभीर अपराध समाज में गरिमा, समानता और न्याय की नींव को हिला देते हैं, लेकिन बिना ठोस साक्ष्य के आरोपियों को जेल में रखना न्याय के सिद्धांतों के खिलाफ है।
मामले की पृष्ठभूमि
यह मामला नवंबर 2023 का है, जब एक नवविवाहिता की शादी के एक साल के भीतर ही बाथरूम में पंखे से लटककर आत्महत्या करने की सूचना मिली थी। मृतका के परिवार ने दहेज की मांग को लेकर उत्पीड़न के आरोप लगाए थे, जिसमें कार की मांग का उल्लेख किया गया था। हालांकि, कोर्ट ने पाया कि मृतका या उसके परिवार द्वारा जीवनकाल में कोई औपचारिक शिकायत दर्ज नहीं की गई थी, और दहेज की मांग का उल्लेख केवल घटना के बाद के बयानों में किया गया था।
कोर्ट की टिप्पणियाँ
न्यायमूर्ति नरूला ने कहा कि दहेज हत्या के मामलों में प्रत्येक केस के तथ्यों और परिस्थितियों के आधार पर निर्णय लिया जाना चाहिए। उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि मृतका के परिवार के बयानों में घटना से ठीक पहले दहेज की मांग या उत्पीड़न के स्पष्ट विवरण नहीं थे, जिससे अभियोजन पक्ष का मामला कमजोर हुआ।
जमानत के आधार
- मृतका के परिवार द्वारा जीवनकाल में कोई औपचारिक शिकायत दर्ज नहीं की गई थी।
- दहेज की मांग का उल्लेख केवल घटना के बाद के बयानों में किया गया।
- मृतका के परिवार के बयानों में घटना से ठीक पहले दहेज की मांग या उत्पीड़न के स्पष्ट विवरण नहीं थे।
- चार्जशीट दाखिल हो चुकी है और ट्रायल में समय लग सकता है।
न्यायिक संतुलन की आवश्यकता
कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि दहेज हत्या जैसे गंभीर अपराधों के मामलों में भी, यदि साक्ष्य पर्याप्त नहीं हैं, तो आरोपी को अनिश्चितकाल तक जेल में रखना न्यायसंगत नहीं है। यह निर्णय न्यायिक प्रणाली में साक्ष्य-आधारित निर्णयों के महत्व को रेखांकित करता है।
यह मामला दहेज हत्या के मामलों में न्यायिक प्रक्रिया की जटिलताओं और साक्ष्य की भूमिका को उजागर करता है, जहाँ न्यायिक संतुलन बनाए रखना आवश्यक है।