केसर की खेती ने कैसे बदली कश्मीर की तस्वीर: दिलचस्प है ईरान से भारत तक का सफर

कश्मीर की घाटियाँ, अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए पूरी दुनिया में मशहूर हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि यहां की सबसे मशहूर खेती – केसर (Saffron) ने कश्मीर की तस्वीर को कैसे बदल दिया? कश्मीर केसर की खेती का सबसे बड़ा उत्पादक क्षेत्र बन चुका है, और अब यह भारत में ईरान के बाद केसर का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक बन चुका है। आइए जानते हैं, कैसे कश्मीर में केसर की खेती की शुरुआत हुई और यह इतना खास क्यों है।

केसर की शुरुआत: ईरान से कश्मीर तक का सफर

केसर की खेती का इतिहास ईरान से शुरू होता है। यह मसाला जो ‘देवताओं का मसाला’ भी कहा जाता है, ईरान और उसके आस-पास के क्षेत्रों में उगाया गया था। वहां के शासकों ने इसे शाही बगीचों में बढ़ावा दिया और इसे एक अनमोल खजाने की तरह संरक्षित किया। फिर, यह सुगंधित मसाला यूनान और रोम तक पहुंचा, जहां इसे बहुत मूल्यवान समझा गया और इसका उपयोग खाद्य पदार्थों, औषधियों और सौंदर्य उत्पादों में किया गया।

छठी शताब्दी ईसा पूर्व में फोनीशियन व्यापारियों ने कश्मीर में केसर का व्यापार शुरू किया। इन व्यापारियों ने कश्मीर के स्थानीय लोगों को केसर की खेती करना सिखाया और इसके लिए उपयुक्त जलवायु और मिट्टी के कारण कश्मीर में केसर की खेती फलने-फूलने लगी।

कश्मीर में केसर की खेती के लिए उपयुक्त भौगोलिक स्थितियां

केसर की खेती के लिए कश्मीर की जलवायु और मिट्टी बहुत अनुकूल है। केसर के पौधे को 2000 मीटर से अधिक ऊँचाई वाली ठंडी जलवायु पसंद आती है, जो कश्मीर की घाटियों में आसानी से उपलब्ध है। यहां का तापमान और आर्द्रता केसर के लिए सबसे उपयुक्त हैं। केसर के पौधे को 12 घंटे सूरज की रोशनी की आवश्यकता होती है और इसे कैलकेरियस मिट्टी में उगाना सबसे अच्छा होता है, जो भरपूर कैल्शियम और पोषक तत्वों से भरपूर हो।

कश्मीरी केसर की खासियत

कश्मीरी केसर, जो अपनी उच्च गुणवत्ता और सुर्ख लाल रंग के लिए प्रसिद्ध है, अन्य किस्मों से कहीं अधिक मूल्यवान है। इसकी खासियत यह है कि इसमें क्रोसिन की मात्रा 8 प्रतिशत तक होती है, जो इसे सुर्ख रंग और तीव्र स्वाद देता है, जबकि अन्य किस्मों में यह मात्रा 5-6 प्रतिशत होती है।

2020 में, कश्मीरी केसर को जियोग्राफिकल इंडिकेशन (GI) टैग प्राप्त हुआ, जो इसे उसकी विशिष्टता और उच्च गुणवत्ता के कारण मान्यता देता है। GI टैग मिलने से कश्मीरी किसानों को अपने उत्पाद की सही कीमत मिल रही है और कश्मीर के केसर की गुणवत्ता का अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सम्मान हुआ है।

कश्मीर में केसर की खेती: एक ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर

कश्मीर में केसर की खेती के इतिहास के बारे में एक दिलचस्प मान्यता भी है। कहा जाता है कि 11वीं-12वीं शताब्दी में दो विदेशी संन्यासी, हजरत शेख शरीफुद्दीन और ख्वाजा मसूद वली, कश्मीर आए थे। रास्ते में बीमार पड़ने पर स्थानीय आदिवासी समुदाय ने उनका इलाज किया। इसके बदले में संन्यासियों ने उन्हें केसर का फूल दिया और बताया कि यह न केवल सुंदर है, बल्कि औषधीय गुणों से भरपूर है। इस उपहार के बाद कश्मीर में केसर की खेती शुरू हुई और धीरे-धीरे यह एक महत्वपूर्ण कृषि उत्पाद बन गया।

आज के दौर में कश्मीर की केसर खेती

आज के समय में, कश्मीर के पंपोर क्षेत्र को केसर की खेती के लिए पूरी दुनिया में जाना जाता है। यहां की मिट्टी और जलवायु के कारण यहां उगने वाला केसर अन्य किसी भी स्थान पर उगने वाले केसर से बेहतर माना जाता है। कश्मीरी केसर न केवल भारत में, बल्कि विदेशों में भी बड़े पैमाने पर निर्यात किया जाता है।


कश्मीर की खूबसूरत घाटियों में उगने वाला केसर, सिर्फ एक मसाला नहीं, बल्कि कश्मीर की सांस्कृतिक धरोहर और कृषि की पहचान बन चुका है। इसकी खेती ने कश्मीर के किसानों की जीवन-यात्रा को बदला है और दुनिया भर में कश्मीर को एक नई पहचान दी है। आज, कश्मीरी केसर न केवल अपने स्वाद और खुशबू के लिए मशहूर है, बल्कि इसकी गुणवत्ता और शुद्धता के कारण यह एक बहुमूल्य खजाना बन चुका है।

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